Subject: सोच रहा हूँ किसे जलाऊँ
इतने हो गये रावण
दशहरे के पर्व पर मौसम हुआ सुहावन ;
सोच रहा हूँ किसे जलाऊं इतने हो गये रावण
नेता सारे धूर्त कमीने बदमाश और दशानन ;
पहला नंबर सोनिया का है और दूजा मनमोहन
धर्म की जीत सदा ही होती कहें शास्त्र के ज्ञानी ;
विजयदशमी प्रतीक है संतों की यह वाणी
कलियुग में सब उल्टा होता करते हैं मनमानी ;
राम की मर्यादा फुंकती गैया की कुरबानी
सर कटते हैं सैनिकों के रावण पूजे जाते ;
नेतागढ़ सब मार रहे सोने पर नाखून
भरत लक्ष्मण का अभाव है मेघनाद की गूँज ;
सीता निर्वस्त्र करी जा रहीं रहे जटायु ऊँघ
धर्म नैतिकता मिटी देश से खोखला हुआ समाज ;
गुंडे कानून बना रहे हैं लोकसभा में आज
राक्षस भी लज्जित हो जायें, देख के नंगा नाच ;
अंधेर नगरी अनबूझ रजा ,टके सर भाजी टके सर खाजा !
ऐसा लगता साज़.…!!
***जय-हिन्द ***
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