Monday, April 25, 2011

एक दिन तुमसे फिर मिलूंगी.


एक दिन तुमसे फिर मिलूंगी
किसी धुल खाती किताब के पन्नों के बीच
मरी हुई खुश्बू में लिपटी
मसली-कुचली हुई
गुलाब की पंखुडियाँ बन कर
एक दिन तुमसे फिर मिलूंगी
किसी बहुत लंबी
डूबते हुए तारों वाली रात में
जब चाँद गिन रहा होगा
तुम्हारी
छटपटाती करवटों को
और तुम
फिर से उतरोगे अपने
भीतर
एक दिन तुमसे फिर मिलूंगी
जब निकलोगे
किसी सड़क पर
सूखी हुई आँखों में
भीगने की चाह लिए
और फिर कहीं से उठेगा एक बादल
और
तुम्हारे चेहरे पर गिरेगी
वो पहली बूंद
एक दिन
तुमसे फिर मिलूंगी
तुम्हें वापिस लौटाने
वो आँसू
जो तुम अभी मुझे
देकर जा रहें हो
हाँ, मैं मिलूंगी तुम्हें
एक खबर बन कर

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