ठंडी औरत ।
प्रेम में पगी,हिरनी सी आँखें ,
ठिठक जाती हैं,देख कर ,
उसकी आँखों में एक हिंसक पशु ,
वासना की देहरी पर ,दम तोड़ देती है
उसकी चाहत ,आभास होते ही
हकीकत का,जुटाती है
भर पूर शक्ति ,
लेकिन काली बनते बनते भी ,
लेकिन काली बनते बनते भी ,
रह जाती है ,मात्र एक
ठंडी औरत ।
जय-हिन्द
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