Wednesday, October 30, 2013

यहाँ स्कंदमाता की पूजा होती है
गणेश कार्तिक को भोग लगता है
और अशोक सुंदरी फूट-फूट  रोती है

चंदन नही, रक्त भरे हाथों से
देवी का शृंगार करते हैं
गर्भ की कन्याओं का जो
वंश के नाम संहार करते हैं

अचरज होता है क्यूँ शक्ति के नाम पर
नौ दिनो का उपवास होता है
कहाँ मिलेंगी कंजके लोगों को
जहाँ गर्भ उनका अंतिम निवास होता है

कभी मन्त्र से, कभी जाप से
नर तुमको छल रहा है
मत आओ इस धरती पर देवी 
यहाँ तो चिरस्थायि
भद्रकाल चल रहा है


जय-हिन्द 

No comments:

Post a Comment