यहाँ स्कंदमाता की पूजा होती है
गणेश कार्तिक को भोग लगता है
और अशोक सुंदरी फूट-फूट रोती है
चंदन नही, रक्त भरे हाथों से
देवी का शृंगार करते हैं
गर्भ की कन्याओं का जो
वंश के नाम संहार करते हैं
अचरज होता है क्यूँ शक्ति के नाम पर
नौ दिनो का उपवास होता है
कहाँ मिलेंगी कंजके लोगों को
जहाँ गर्भ उनका अंतिम निवास होता है
कभी मन्त्र से, कभी जाप से
नर तुमको छल रहा है
मत आओ इस धरती पर देवी
यहाँ तो चिरस्थायि
भद्रकाल चल रहा है
गणेश कार्तिक को भोग लगता है
और अशोक सुंदरी फूट-फूट रोती है
चंदन नही, रक्त भरे हाथों से
देवी का शृंगार करते हैं
गर्भ की कन्याओं का जो
वंश के नाम संहार करते हैं
अचरज होता है क्यूँ शक्ति के नाम पर
नौ दिनो का उपवास होता है
कहाँ मिलेंगी कंजके लोगों को
जहाँ गर्भ उनका अंतिम निवास होता है
कभी मन्त्र से, कभी जाप से
नर तुमको छल रहा है
मत आओ इस धरती पर देवी
यहाँ तो चिरस्थायि
भद्रकाल चल रहा है
जय-हिन्द
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